Monday 8 October 2012

प्रेममय !



बात ये नजदीक की है
दस बरस भी ठीक से बीते ना होंगे
मै युवा होने चला था
तुम किशोरी भी कहीं से तनिक ना थी

प्रेम की भाषा का वर्णन क्या करूँ मैं
ठीक से मैंने अभी बोली नहीं थी
और तुमने भी जुबां खोली कहीं थी?
पर हाय यह प्रेम
यह ह्रदय जो प्रेम से अतिरेक हो
उन्माद में और भावना में अभिव्यक्त था
अब भला भाषा की किसको क्या ज़रूरत
मै था तुम थी और जहाँ था
फिर उमर भोली नहीं थी.

हर जगह मेरा ही चेहरा था उसे जो दीख पड़ता
हर रंग था चादर लपेटे, जो की मेरे रंग सा था
हर शब्द में और भावना में
हर वाक्य में और कल्पना में
मैं ही मै था सब समाहित
और सब मुझसे प्रभावित
और अपना हाल भी मै क्या बताऊँ
खेली बस होली नहीं थी.

मेरा चिंतन मेरी काया
कुछ अधिक भी उस अबल से भिन्न ना थी
दिन विरत था मिलन की परिकल्पना में
और संध्य में जो थी कभी साकार होती.
मै जग उदित प्रतिपल मुदित
मंथ सागर का समेटे जी रहा था.
और कभी जब भोर की और सान्झ दूरी बढ़ी थी
मृग नयन की वह विरलता और सकल जग की विकलता
तुम विकल थी मै सकल था.
किन्तु हम दोनों निबल थे.

पर ह्रदय के अंतस में हमने जो कहीं था बाँध रखा
क्या कभी उसने कही थी या कभी उसने सुनी थी
ना कभी वो शब्द आये ना कभी स्पर्श जाने
प्रश्न थे सम्पूर्ण थे किन्तु उत्तर कौन माने
व्यर्थ के सामर्थ्य के कुछ बन्धनों में तुम पड़ी थी
पुरुषार्थ की परिवार की सीमा के अंदर मै खड़ा था

और आज जब बरसों का सावन जा चूका है
और जब हमारा क्लांत यौवन चुका है
तुम वहां अपने प्रिये के चिर-सघर को गढ़ रही हो
मै यहाँ प्रियतम की अपने शांत बातें पढ़ रहा हूँ

और आज तुमको क्या बताऊँ (हे प्रियतम)
वेदना में यातना में चित्त में और कल्पना में
पंक मय सकलंक मय
अग्नि से उद्विग्न होकर डंक मय
राह तेरी देखता हूँ.
नयन धूमिल ही सही और आस धीमी ही सही
पर छांह तेरी देखता हूँ.
और प्रेम में निर्भीक हो
कुछ स्वर कहीं से कह रहे हैं ;
" बात ये नजदीक की है
दस बरस भी ठीक से बीते ना होंगे
मै युवा होने चला था
तुम किशोरी भी कहीं से तनिक ना थी "

1 comment:

  1. Superb..It just reminded me of my days..when I fell in love for the first time.

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