Anupraas/ Anupras (अनुप्रास) is basically repetition of letters, words or combination of letters in poetry. The most common form of Anupraas is words beginning with one letter repeatedly. Such is life, comes full circle and repeats itself at every instance !
Wednesday 15 August 2012
Wednesday 8 August 2012
अशांत मन....... कुछ यूँ ही !
जो गुज़र चुकी जो बीत ग
यीं उन बातों को उन राहों पर अब रात बिताना ठीक नहीं.
जो पंथी था अब साथ नहीं उन बातों पर अब राख चिताना ठीक नहीं.
मेरे अंतर का विचलित मन, अनमन उद्द्वेलित जीवन
इन सब से कह दो शांत धरें अब बात बढ़ाना ठीक नहीं.
इक आज अकेलेपन ने यूँ मन को घेरा जीवन ढेरा
जब सोच कही है शून्य पड़ी क्या जानू मै तेरा मेरा
एकाकीपन का सार सही तुम साथ नहीं कुछ हाथ नहीं
वैरागी हूँ क्या व्यक्त करूँ अब हाथ बढ़ाना ठीक नहीं
जो गुज़र चुकी जो बीत गयीं उन बातों को उन राहों पर अब रात बिताना ठीक नहीं.
कुछ रुका हुआ कुछ ठहरा सा अनजाना सा मन आज हुआ.
बहता जल जैसे ठहरा हो नीरवता का आभास हुआ
फिर आज अचानक सिहरन ने अपनी चादर सी फैलाई
फिर विवश पड़ा आकुल अंतर फिर साँझ ने ली एक अंगडाई
मन रे तू संयम रख, इस अग्नि ह्रदय की पीड़ा पर
जीवन के पिछले पृष्ठों पर अब लेख चलाना ठीक नहीं.
जो गुज़र चुकी जो बीत गयीं उन बातों को उन राहों पर अब रात बिताना ठीक नहीं.
(.....अभी शेष है )
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